बुधवार, 16 दिसंबर 2020

गीतिका - कविस्तुति

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-डॉ. सूर्य नारायण गौतम 


पापा- शिक्षा तिवारी || काव्य मंजरी



दस्तक हम देते हैं दुनिया में और आंखें किसी और की चमक जाती हैं 

कदम हमारे चलने लगते हैं और ख्वाहिशें किसी और की बढ़ जाती है

होंठ अपने मुस्कुरा देते हैं और दिल किसी और का खुशियों में खो जाता है

नीर अपने नैना बहा देते हैं और गला किसी और का दर्द में सो जाता है

समस्याओं को पिरो देते हैं जो समाधान के धागों में

संस्कारों को बो देते हैं जो हमारे दिलों के बागों में

पापा कहती है दुनिया उन्हें जिनकी सिर्फ परी होने पर हमें गर्व सा हो जाता है

पर दोस्तों जब वही परी अपने पापा का गुरूर बन जाती तो उनके लिए भी यही जीवन स्वर्ग सा हो जाता है।

-शिक्षा तिवारी  || काव्य मंजरी 


दोहे- नवीन || काव्य-मंजरी

नवीन कुमार तिवारी ,  भिलाई


कलमकार को मंच पर,वाह-वाह दरकार ।

घर पर भूखे रह लिये,पूछे कब सरकार ।।०१।।

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राजाश्रय की आस में,दौड़े रचनाकार ।

सत्ता चम्मच खोजती,जूते चमके सार ।।०२ ।।

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नवीन || काव्य-मंजरी

दोहापुरम् - अमन चाँदपुरी को समर्पित

अमन चाँदपुरी



मिट्टी को सोना करें, नव्य सृजन में दक्ष।
कुम्भकार के हाथ हैं, ईश्वर के समकक्ष।।

बता रही थी ज़िन्दगी, बाँच कर्म का पाठ।
मेहनतकश की मौज़ है, मेहनतकश के ठाट।।

ख़ुशियों के पल अनगिनत, सुख की ठंडी छाँव।
झरबेरी-सा झर रहा, मेरे मन का गाँव।।

उनकी फ़ितरत सूर्य-सी, चमक रहे हैं नित्य।
मेरी फ़ितरत चाँद-सी, ढूँढ़ रहे आदित्य।।

कुंठित सोच-विचार जब, हुआ काव्य में लिप्त।
शब्द अपाहिज हो गए, अर्थ हुए संक्षिप्त।।

~ अमन चाँदपुरी

https://dohapuramamanchandpuri.blogspot.com/2019/02/9.html


Saloni-ठंड बयार ,सलोनी क्षितिज

प्रयत्नशील तुम बनो निरन्तर,
मत हारो अभावों से।
तेज सूर्य का कम नही होता,
इन ठंडी बयारों से।

सलोनी क्षितिज , जयपुर || काव्य मंजरी


माता स्तुति- ज्योति नारायण || काव्य-मंजरी

पग पायल पहन के पधांरीं हैं।
माँ कन्या कुंवारी विराजीं हैं।।

नकबेसर दीप स्तम्भ बनें...।
नीरव रातों को पथ दिखाती है।।

हे भ्रमर भावनी पार्वती....।
शैल पुत्री माँ कहलाती है ।।
हे खप्पर धारणी काली तू ।
माते, लक्ष्मी -सरस्वती महतारी हैं।।

तेरी पुत्री तुझ से गुहार करें ।
क्यों कलियां मसली जाती है।।
नव नव दुर्गा हे कल्याणी..... ।
पशु नर मर्दनी कहलाती है।।

सारे दूर करो माँ भव बाधा।
तू ही तो जीवन दात्री है।।
करुँ दीपशिखा ले आरती मैं।
माँ तू अंखड ज्योति रुद्राणी हैं।।

तुम रह कर धरा पर देखो ।
अब, मनुष्य में मनुष्यता नहीं आती है।।
माँ जगत जननी हे पूजिता।
क्यों न समय पे शक्ति दिखाती है।।

ज्योति नारायण || काव्य-मंजरी

नारी जीवन पर आधारित-दोहे- ज्योति नारायण , हैदराबाद


सबला है अबला नहीं, नारी जग की शान।
मीरा, राधा, गार्गी, वह रजिया सुल्तान।।

नारी के सम्मान में ,नहीं सिर्फ जयगान।
ज्योति नारायण
दोयम दर्जे की नहीं, है इसकी  पहचान।।

कलम-कटारी-बेलना, है यह स्वर्ण-विहान।
जन्म विश्व को दे रही, यह ईश्वर वरदान।।

इससे जीवन सुलभ है, यह सुख का है धाम।
धरती जैसा धैर्य है, नभ सा है अभिमान।।

 दोनों कुल है तारती, कर शिव सा विषपान।
देवी है यह प्रीति की, ममता की है खान।।

ज्योति नारायण || काव्य मंजरी

मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

दृगजल के दो रंग- भाउराव महंत || काव्य-मंजरी

 ज्यों मैं पोछूँ एक आँख को,

त्यों दूजे से रहें निकल।
दुख की बेला में भी आँसू,
करते रहते मुझसे छल।।

जीवन की आपाधापी में,
भाउराव महंत
संघर्षों का अंत नहीं।
दूर-दूर तक दुख का पतझड़,
सुख का कहीं बसंत नहीं।
तिस पर भी मेरी निर्धनता,
करती मुझको नित्य विकल।।

रोक–रोककर, रोक रहा हूँ,
किंतु निकलते जाते हैं।
नहीं पता मुझको ये निष्ठुर,
आँसू क्यों इतराते हैं।
जितने बल से इनको रोकूँ,
होती उतनी शक्ति-प्रबल।।

जितने आँसू झरते मेरे,
उतना ही दुख बढ़ता है।
इन दुःखों से फिर कविता का,
मुझमें  मेघ  उमड़ता  है।
पीड़ा से जो आह निकलती,
बनकर आते गीत–ग़ज़ल।।
  -भाऊराव महंत  || काव्य-मंजरी 


माँ शारदे वंदना स्त्रोतम्- -मनोरमा जैन पाखी

 माँ शारदे वंदना स्त्रोतम्

समग्र-तत्त्व -दर्शनीम्,
विमुक्ति-मार्ग-घोषणीम्
कषाय-मोह-ध्वंसनीम्
त्वान्नमामि शारदे।। [1]

त्रिलोक-जन-पूजिताम्
पाखी 
भवाब्धि-नीर-शोषिकाम्।
मोहांधकारनाशिकां
त्वान्नमामि शारदे।।   [2]

विमोह - शैल - त्रोटिता,
विकास - ज्ञानस्य दा।
तथा च मार्गदर्शिता
त्वन्नमामि शारदे।।3।।

स्याद्वाद-व्याप्नीं
कर्म-चक्र-मर्दनीं।।
एकांतवाद-हारणीं
त्वान्नमामि  शारदे।।  [4]

षटद्रव्यभाषिकाम् ,
तत्वनव-प्रकाशिकां।
ज्ञानज्योतिदायनीम्
त्वान्नमामि शारदे।।   [5]

हंसस्कंधसमारूढ़ां,
वीणापुस्तकधारिणीम्
विदुषीं मातृरुपाञ्च
त्वान्नमामि शारदे।।   [6]

-मनोरमा जैन 'पाखी '
अणुडाक-manoramajain43718@gmail.com