रविवार, 29 नवंबर 2020

कुछ पंक्तियाँ



विकल इस ज़िंदगी के शेष लमहें  चंद हो जाएँ।
बढ़ातीं  पीर  हैं  साँसें,  स्वतः  ये  मंद हो  जाएँ।
अभी मैं साथ था उसके, अभी तनहाइयों में हूँ-
दिखे वो  बंद नयनों से, नयन  ये  बंद हो जाएँ।

जयशंकर पाठक 'प्रदग्ध' || काव्य-मंजरी

दोहा



लोग  अकारण घूमते,   
                     है इनसे अनुरोध।
स्वयं नियंत्रण राखिये,  
                      कोरोना गतिरोध।।

  रजनीश सोनी || काव्य मंजरी।।