सिंधु छंद
छन्द ४
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आज का छन्द - सिन्धु
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• सिन्धु छन्द समपाद मात्रिक छन्द है। इसके चारों चरणों में २१ मात्रायें होती हैं।
• इसमें मध्य यति नहीं होती। दो-दो चरणों के अंत में तुकान्त का विधान होता है।
• इसकी पहली, आठवीं एवं पन्द्रहवीं मात्रायें लघु होती हैं। अन्य नियम मात्रिक छन्दानुसार ही होते हैं।
• इसके लक्षण एवं इसकी परिभाषा इस प्रकार बताये जा सकते हैं।
लखौ त्रय लोक महिमा सिंधु की भारी।
तऊ पुनि गर्व के कारण भयो खारी।।
लहे प्रभुता सदा जो शील को धारै।
दया हरि सों तरैं कुल आपनो तारै।।
इस छन्द की चाल उर्दू की बह्र - बह्र-ए-हज़ज मुसद्दस सालिम से मिलती है अर्थात् (मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन, 1222 1222 1222), किन्तु यह मात्र लय साधने हेतु है,
यह इसकी परिभाषा कदापि नहीं है। लिखने के लिये इस सुविधा का प्रयोग किया जा सकता है, किन्तु यह आवश्यक नहीं है, यथा इसका लक्षण इस प्रकार बनता हैः-
सजे समपाद मात्रिक छन्द सिंधु रंग।
रहे इक्कीस मात्रा सब चरणन अंग।।
प्रथम अष्ट सह पंचदश लघु ही रखना।
तुक भी समान दो-दो चरण मति धरना।।
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इस लक्षण में यह छन्द नियमानुकूल होते हुए भी बह्र में कदापि नहीं है, अतः बह्र को आधार बनाकर छन्द लिखा अवश्य जा सकता है, किन्तु यही उसकी परिभाषा मानकर इस छन्द को लिखना भ्रामक है तथा छन्द को न समझने का कारण है।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (20-01-2021) को "हो गया क्यों देश ऐसा" (चर्चा अंक-3952) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आभार आपका
हटाएंआपका बेहद आभार आदरणीय
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंनमन आभार आपका
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