सूरज की पहली किरणों ने जैसे ही दिल्ली के आकाश को छुआ, वैसे ही रमेश की आंखें खुल गईं। आज हिंदी दिवस था, और उसे अपने कॉलेज में एक भाषण देना था। वह उत्साहित था, लेकिन साथ ही थोड़ा चिंतित भी। उसने अपने भाषण को एक बार फिर से पढ़ा, जिसमें वह हिंदी की महानता का बखान कर रहा था।
रमेश ने अपने पिता की तस्वीर की ओर देखा। वे एक प्रसिद्ध भाषाविद् थे, जिन्होंने भारत की भाषाई विविधता पर काम किया था। अचानक, उसे लगा जैसे उसके पिता की आवाज उसके कानों में गूंज रही हो: "बेटा, भारत की असली ताकत उसकी विविधता में है।"
इस विचार ने रमेश को झकझोर दिया। वह अपने लैपटॉप पर बैठ गया और एक नया भाषण लिखने लगा। जैसे-जैसे वह लिखता गया, उसके मन में भारत की विविध संस्कृतियों और भाषाओं की तस्वीरें उभरने लगीं।
कॉलेज पहुंचकर, रमेश ने देखा कि वहां पहले से ही हिंदी दिवस के उत्सव की तैयारियां चल रही थीं। रंग-बिरंगे बैनर लगे थे, जिन पर हिंदी के महान लेखकों के उद्धरण लिखे थे। लेकिन रमेश के मन में अब एक अलग ही विचार था।
जब उसकी बारी आई, तो वह मंच पर चढ़ा और गहरी सांस लेकर बोलना शुरू किया:
"मित्रों, आज हम यहां हिंदी दिवस मनाने के लिए इकट्ठा हुए हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में 1600 से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं? हर 10-20 किलोमीटर पर भाषा बदल जाती है। यह हमारी असली ताकत है।"
श्रोताओं में एक सन्नाटा छा गया। रमेश ने आगे कहा, "हिंदी हमारी एक महत्वपूर्ण भाषा है, लेकिन वह अकेली नहीं है। तमिल, जो दुनिया की सबसे पुरानी जीवित भाषाओं में से एक है; बंगाली, जिसमें रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी अमर रचनाएं लिखीं; मलयालम, जिसकी लिपि एक कलाकृति जैसी है; ये सभी हमारी धरोहर हैं।"
रमेश ने अपने दादा-दादी के गांव की याद दिलाई, जहां लोग भोजपुरी बोलते थे। उसने बताया कि कैसे वहां के लोकगीत उसे हमेशा भावुक कर देते थे, भले ही वह उन्हें पूरी तरह से समझ नहीं पाता था।
"और सिर्फ भाषाएं ही नहीं," रमेश ने जारी रखा, "हर भाषा के साथ एक पूरी संस्कृति जुड़ी हुई है। खान-पान, पहनावा, रीति-रिवाज, सब कुछ। जब हम किसी एक भाषा को श्रेष्ठ मानते हैं, तो हम इन सभी विविधताओं को नकार रहे होते हैं।"
उसने श्रोताओं को याद दिलाया कि भारत का संविधान 22 भाषाओं को मान्यता देता है। "लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि बाकी भाषाएं कम महत्वपूर्ण हैं। हर भाषा, चाहे वह किसी छोटे से गांव में ही क्यों न बोली जाती हो, हमारी सांस्कृतिक विरासत का एक अमूल्य हिस्सा है।"
रमेश ने अपने दक्षिण भारतीय मित्र राघवन का उदाहरण दिया, जिसने उसे तमिल सिखाने की कोशिश की थी। "मुझे याद है, जब मैंने पहली बार 'वणक्कम' कहा, तो राघवन की आंखें कैसे चमक उठी थीं। उस पल में, हमारे बीच की दूरी कम हो गई थी।"
उसने कहा, "हमें हिंदी का सम्मान करना चाहिए, लेकिन साथ ही अन्य भाषाओं को भी सीखने और समझने की कोशिश करनी चाहिए। क्या आप जानते हैं कि संथाली भाषा में कितने सुंदर लोकगीत हैं? या फिर कश्मीरी कविता की मिठास के बारे में?"
रमेश ने अपने भाषण के अंत में कहा, "आइए, हम आज से एक नया संकल्प लें। हम अपनी मातृभाषा के साथ-साथ कम से कम एक और भारतीय भाषा सीखने का प्रयास करेंगे। यह न सिर्फ हमारे देश की विविधता को समझने में मदद करेगा, बल्कि हमें एक-दूसरे के करीब भी लाएगा।"
जैसे ही रमेश ने अपना भाषण समाप्त किया, हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। कई छात्र और शिक्षक उसके पास आए और उन्होंने कहा कि उन्होंने पहली बार भाषाई विविधता के महत्व को इस तरह से समझा।
उस शाम, रमेश घर लौटा तो उसने देखा कि उसकी मां उसके लिए इंतजार कर रही थीं। उन्होंने गर्व से कहा, "बेटा, तुम्हारे पिता बहुत खुश होते अगर वे आज तुम्हें सुन पाते।"
रमेश मुस्कुराया और कहा, "मां, मुझे लगता है कि वे सुन रहे थे। उनकी सीख ने ही मुझे यह सब समझने में मदद की।"
उस रात, रमेश ने एक नया संकल्प लिया। वह अगले एक साल में कम से कम दो नई भारतीय भाषाएं सीखेगा। उसने सोचा कि वह बंगाली और तमिल से शुरुआत करेगा।
अगले दिन, कॉलेज में एक नई पहल शुरू हुई। छात्रों ने एक 'भाषा मित्र' कार्यक्रम शुरू किया, जहां हर छात्र किसी दूसरे छात्र को अपनी मातृभाषा सिखाता था। रमेश ने देखा कि कैसे यह छोटी सी पहल लोगों को एक-दूसरे के करीब ला रही थी।
कुछ महीनों बाद, कॉलेज ने एक 'भाषा मेला' का आयोजन किया। इसमें देश भर की विभिन्न भाषाओं के स्टॉल लगाए गए थे। छात्र और शिक्षक अलग-अलग भाषाओं में बात कर रहे थे, गाने गा रहे थे, और कविताएं सुना रहे थे।
रमेश ने देखा कि कैसे एक छोटे से विचार ने इतना बड़ा बदलाव ला दिया था। उसने महसूस किया कि भाषा सिर्फ संवाद का माध्यम नहीं है, बल्कि यह लोगों को जोड़ने का एक शक्तिशाली उपकरण भी है।
उस साल के अंत में, जब फिर से हिंदी दिवस आया, तो कॉलेज का माहौल बिलकुल अलग था। इस बार, यह सिर्फ हिंदी का उत्सव नहीं था, बल्कि भारत की सभी भाषाओं का उत्सव था।
रमेश ने मंच से कहा, "पिछले साल, हमने एक नई यात्रा शुरू की थी। आज, हम सिर्फ एक भाषा नहीं, बल्कि अपनी सभी भाषाओं का जश्न मना रहे हैं। यह है असली भारत - विविधता में एकता।"
जैसे-जैसे सूरज ढलने लगा, रमेश ने अपने पिता की तस्वीर की ओर देखा और मुस्कुराया। उसे लगा जैसे उनकी आंखें भी चमक रही हों, मानो वे कह रहे हों, "शाबाश बेटा, तुमने असली भारत को समझ लिया है।"
रमेश जानता था कि यह सिर्फ शुरुआत है। भारत की भाषाई विविधता को समझने और सम्मान देने की यात्रा लंबी है, लेकिन वह इस यात्रा पर चलने के लिए तैयार था। उसे विश्वास था कि एक दिन, हर भारतीय अपनी विविधता पर गर्व करेगा और इसे अपनी सबसे बड़ी ताकत मानेगा।
- आचार्य प्रताप
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