अक्षरवाणी काव्य मंजरी मंच के तत्वावधान में आयोजित ऑनलाइन
साहित्यिक होली महोत्सव में देश के विभिन्न प्रांतों से जुड़े
प्रतिष्ठित कवियों
कवयित्रियों ने अपने काव्य-पाठ से
दर्शको और श्रोताओ के
मन में रस-रंग का संचार किया। कार्यक्रम का शुभारंभ मंगलाचरणम से हुआ, जिसमें
गुना, मध्यप्रदेश से जुड़े पंडित शुभम शर्मा ने अपनी सुमधुर वाणी
से मंगलाचरणम प्रस्तुत कर वातावरण को भक्तिमय बना दिया। तत्पश्चात देहरादून से अंशी
कमल जी ने वाणी-वंदना करते हुए मां सरस्वती का आह्वान किया।
होली के रंगों की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए हैदराबाद से जुडी
आदरणीय ज्योति नारायण 'ज्योति' जी
ने पौराणिक व वैज्ञानिक कारण से चले आ रहे होली उत्सव की विशिष्टता पर प्रकाश
डाला। उन्होंने बताया कि प्राचीन समय में टेसू और गेंदा के फूलों के रंगों से होली
खेली जाती थी, जिससे ऋतु परिवर्तन के समय मानव शरीर
में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता था। उनके काव्यपाठ ने श्रोताओं को पुरातन
परंपराओं से रूबरू कराया।
इसके पश्चात झारखंड से जुड़े सीमा सुरक्षा बल (BSF) के
कर्मठ सैनिक एवं कवि जयशंकर प्रदग्ध जी ने अपनी ओजस्वी वाणी में दो भावपूर्ण गीत
प्रस्तुत किए। एक गीत नारी शक्ति को समर्पित था, जबकि
दूसरा गीत प्रेम पर आधारित था। उनके गीत "एक दशक से रोते-रोते, अब यह आंसू सूख चुके हैं" ने श्रोताओं के मन को गहराई से
स्पर्श किया और अपार सराहना प्राप्त की।
कार्यक्रम की रचनात्मकता को और अधिक रंगीन बनाते हुए देहरादून
की अंशी कमल दीदी ने होली पर आधारित एक अत्यंत मधुर गीत प्रस्तुत किया, जिसने श्रोताओं को झूमने पर विवश कर दिया। तत्पश्चात बालाघाट,
मध्यप्रदेश से जुड़े सुप्रसिद्ध बाल कवि आदरणीय भाऊराव महंत जी
ने होली के उल्लास पर केंद्रित अपनी घनाक्षरी छंद और गीत से बाल सुलभ आनंद का संचार किया। उनकी
प्रस्तुतियों को श्रोताओं ने भरपूर सराहा।
भीलवाड़ा, राजस्थान से जुड़े वरिष्ठ कवि मोहनपुरी
जी ने प्रेम, होली तथा सामाजिक विषयों पर अपनी
प्रभावशाली कविताएँ प्रस्तुत कीं। विशेष रूप से उनकी घनाक्षरी छंद में रचित कविता
ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया और सभा में तालियों की गूंज सुनाई दी।
कार्यक्रम के समापन सत्र में देहरादून की ही सुप्रसिद्ध
कवयित्री आदरणीय नीरू गुप्ता 'मोहिनी' जी
ने होली पर आधारित अत्यंत मनोहारी प्रस्तुति दी, जिससे
माहौल पूरी तरह रंगमय हो गया। उनकी कविता ने श्रोताओं के हृदय में होली के रंगों
और उमंगों को जीवंत कर दिया।
अंततः कार्यक्रम के संचालक आयोजक एवं संयोजक आचार्य प्रताप जी
ने सभी आमंत्रित कवियों और उपस्थित श्रोताओं का आभार व्यक्त करते हुए होली की
शुभकामनाएं प्रेषित कीं। उन्होंने साहित्यिक आयोजनों के माध्यम से हिंदी भाषा और
संस्कृति के संरक्षण पर बल दिया और भविष्य में भी ऐसे आयोजनों की निरंतरता की
कामना की।
यह साहित्यिक होली महोत्सव, जहां
एक ओर काव्य के रंग बिखेरने में सफल रहा, वहीं
दूसरी ओर श्रोताओं के मन में साहित्यिक चेतना का संचार करने में भी पूर्णतः सफल सिद्ध
हुआ।
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